900 total views
इस जग में कैसे रहे प्रभु की लीला का परम आनंद कैसे प्राप्त करें इस पर इशारा करती मेरी यह कविता
अद्भुत महिमा तेरी हैं भगवन,
हम इस जग क्यों आए
तेरा भक्त ही जान पाया है
है निराकार भगवान मेरे,
ये कैसा मायाजाल तूने बनाया है
थोड़ा कुछ मिल जाता है तो
खुद को इंसान महान समझता है
कुछ और ज्यादा मिल जाता है तो
खुद को ही भगवान समझता है
जब प्रभु की लीला होती है
तो बहुत कुछ समझ आता है
धन दौलत मोह माया पड़ी रहती है
जब दुनिया की चक्की चलती है
अति सूक्ष्म कोराना
जो आंखों से भी नहीं दिखता
सभी इंसान डर जाते हैं
चाहे छोटा हो या बड़ा
सभी इंसान डर जाते हैं।।
है निराकार भगवान मेरे
तूने ये जग साकार बनाया है
ब्रह्म का कहना है
कोई कहता है मथुरा मे रहते हो
और कोई कहता है काशी मे
कोई कहता है तुम हरिद्वार मे रहते हो
पूरी उम्र गंवा दी तुझे ढूंढते ढूंढते
अब समझ में आया
तुम तो कण-कण में रहते हो
जब मोह माया रूपी कांच को
साफ कर उसकी धूल हटाकर
भक्ती से जब ढूंढा तुमको
अपने मन मन्दिर मे ही पाया है
व्यर्थ घूमता रहा मैं जीवन भर
तुझे अपने पास ही पाया है
ब्रह्म का कहना है
अब हम शरण मे आए हैं तेरी
हम जीवों का कल्याण करो
हम सबने इस मोह माया मे
जीवन के इस आखिरी मोड़ पर
सब कुछ समझ आया है
हे प्रभु तेरी महिमा न्यारी
तेरी माया तू ही जाने
यह भक्त तेरी शरण में आया है
अब तू चाहे तो चरण में मिला दे
या चाहे तो खुद में मिला दे
मुक्ति इस मोह माया के जाल से
दिला दे
हे प्रभु आनंद दाता
इतनी समझ हमको दीजिए